गुना की राजनीति में बड़े खेल होने की सुगबुगाहट, पढ़ें राजनीतिक विशेषक राजेंद्र नायक की यह रिपोर्ट | GUNA SAMACHAR - गुना समाचार

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गुना की राजनीति में बड़े खेल होने की सुगबुगाहट, पढ़ें राजनीतिक विशेषक राजेंद्र नायक की यह रिपोर्ट | GUNA SAMACHAR

न्यूज़ डेस्क| गुना की राजनीति के हिसाब से आगामी 15 महीने बहुत महत्वपूर्ण होने वाले हैं। यह बताने वाले हैं कि गुना लोकसभा से लेकिर नगरीय निकायों की राजनीति कौनसी करवट लेने वाली है। जिले की राजनीति में विगत दिनों स्थान परिवर्तन योग ने भारी उथल-पुथल मचाई और इतिहास भी बदल डाला।

ज्योतिष में ग्रहों के स्थान परिवर्तन योग को महत्वपूर्ण माना जाता है। यह स्थानीय राजनीति में भी चैंकाने वाला परिणाम लेकर आया। जबकि कांग्रेस में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के ही सिपहसालार रहे केपी यादव ने भाजपा की शरण में आकर मोदी लहर के सहारे गुना की राजनीति में महल की अपराजेयता को भंग कर दिया। इसके बाद दूसरा महत्वपूर्ण स्थान परिवर्तन योग तब आया विधानसभा में आमने-सामने रहे सिंधिया-शिवराज ने गुनगुनाया कि हम साथ-साथ हैं। स्थान परिवर्तन योग यही थमा।

भाजपा के पूर्व मंत्री और बमौरी से पूर्व विधायक केएल अग्रवाल कांग्रेस के साथ हो गए। वहीं राघौगढ़ में दशकों तक दिग्विजय सिंह से जुड़े रहे मूलसिंह दादाभाई के सुपुत्र अब हीरेन्द्र सिंह अब सिंधिया के साथ हैं।

हाल की नगरीय निकाय चुनाव के बाद जिला भाजपा में भारी खींचतान और अराजकता की स्थिति है। इस बीच अफवाह उड़ी कि पूर्व विधायक और नपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह सलूजा कांग्रेस में जाने वाले हैं। हालांकि सलूजा ने इसका खंडन कर दिया है। दूसरी ओर भाजपा के टिकट पर जीतने वाले केपी यादव के स्थान परिवर्तन योग को लेकर भी अटकलों का बाजार गर्म है। इस बात की चर्चा तब गर्म हुई जब सांसद के.पी. यादव के भाई अजय पाल सिंह यादव ने भारत जोड़ों यात्रा में शामिल होते हुए बयान दिया कि भैया भी जल्दी ही कांग्रेस में शामिल होंगे।

अब के.पी. यादव का अगला कदम क्या होगा, यह तो वही जानते हैं। दरअसल इन चर्चाओं को बल इस बात से मिला है कि केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अगला लोकसभा चुनाव गुना से ही लड़ेंगे। जिससे केपी यादव का पत्ता कट सकता है। ऐसे में केपी कांग्रेस में जाकर प्रत्याशी बन सकते हैं। जैसा कि केएल अग्रवाल ने बमौरी में किया था। बहरहाल राजनीति संभावनाओं का खेल है। जिसमें कब पाले बदल जाएं कहा नहीं जा सकता।

जिले की राजनीति में यदि सिंधिया लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं, तो यह बहुत बड़ा रोमांच का विषय नहीं होगा, क्योंकि लोगों का मानना है कि ऐतिहासिक उलटफेर बार-बार होने की संभावना कम ही होती है। लेकिन विधानसभा 2023 चुनाव पर अवश्य बहुत लोगांे की निगाहें होंगी। जैसा कि कई सर्वे रिपोर्ट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं, जिनमें मंत्री संजू सिसौदिया की स्थिति कमजोर स्थिति वाले मंत्रियों में गिनाई जा रही है। इसकी भी खूब चर्चा है कि नगरपालिका अध्यक्ष चुनाव में मंत्री की जो भूमिका रही और मेंडेट वाले प्रत्याशी की पराजय हो गई। इससे महाराज खफा हैं। इन चर्चाओं में कितना दम है या केवल वहम है।

इस बात का खुलासा संजू सिसौदिया को टिकट मिलने या नहीं मिलने से हो जाएगा। एक ओर सिसौदिया के राजनीतिक भविष्य की ओर सभी की निगाहें लगी हुई हैं। दूसरी ओर इस बार बमौरी चुनाव में इस बार स्थिति वैसे भी विकट होने होने वाली है। सामान्य सीट होने के कारण इस पर दावेदारों की संख्या पहले से ही अधिक रही है। अब भाजपा ही नहीं कांग्रेस में भी इस सीट पर टिकट मांगने वालों की कतार लगने वाली है। जिससे सही चयन काफी कठिन रहने वाला है। इस बीच भाजपा में यह सवाल भी है कि गुना और बमौरी सीटों पर टिकट वितरण में सिंधिया-शिवराज के निष्ठावानांे की बराबरी की हिस्सेदारी होगी। अथवा केवल महाराज की ही भागीदारी होगी। यही रूख बताएगा कि गुना विधानसभा सीट पर किसकी मजबूत दावेदारी होगी।

वर्तमान गुना विधायक गोपीलाल जाटव को लेकर चर्चा है कि उनका लंबा कार्यकाल भी उनकी राह में रोड़ा बन सकता है और पार्टी कोई नया चेहरा ला सकती है। अब दूसरी चर्चित सीट राघौगढ़ होगी। जिसके बारे में पूछा जा रहा है कि क्या भाजपा राघौगढ़ विधानसभा चुनाव मे भी गुना लोकसभा करिश्मा करेगी?  क्या नेतृत्व राघौगढ़ की जीत को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाएंगी और अब तक गुना बमौरी तक सीमित रहने वाले सिंधिया अबकी बार राघौगढ़ चाचैड़ा में सक्रिय होकर खुली चुनौती देंगे? भाजपा के प्रयासों और दावों में कितना दम है, इसकी एक झलक तो इसी महीने होने जा रहे नगरपालिका चुनाव के परिणामों से ही मिलेगी। वहीं चाचैड़ा की राजनीति को लेकर अभी एक ही सवाल है कि वहां भाजपा पूर्व विधायक ममता मीणा पर ही विश्वास जताएगी? अथवा कोई नया चेहरा लाएगी। कांग्रेस में कोई दावेदारी की स्थिति तभी बनेगी, जब लक्ष्मण सिंह स्वयं चुनाव नहीं लड़ें। कुल मिलाकर आगामी सवा साल गुना की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण रहने वाला है। पिछले दो तीन सालों में जिले की राजनीति में जो स्थान परिवर्तन योग बने हैं वह क्या रंग दिखाते हैं? जनता उन्हें किस नजरिये से देखते हैं। यह पता चलने वाला है। गुना की राजनीति में एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि यहां खेमों का परिवर्तन भी पूरी तरह से नहीं हुआ है। कुछ महाराज से सहानुभूति रखते हैं, लेकिन कांग्रेस में बने हुए हैं। तो कुछ भाजपा में जाने के बाद भी खुश नहीं है। यह भी सही स्थिति समझने के इंतजार है। आगामी चुनावों के बाद इनकी लाइन भी क्लियर हो सकती है।

लेखक -राजेन्द्र नायक (राजनीतिक विशेषक गुना )

इस लेख मूल लेखक के दायित्व पर प्रकाशित है.

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