Krishna Janmashtmi- कृष्ण तुम रहोगे फिर भी परिभाषित - गुना समाचार

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Krishna Janmashtmi- कृष्ण तुम रहोगे फिर भी परिभाषित


कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !कितना लिखूं !

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

प्रेम का सागर लिखूं !या चेतना का चिंतन लिंखू !

प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिंखू !


रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

ज्ञानियों का गुंथन लिखूं या गाय का ग्वाला लिखूं !

कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !


पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगश्वर लिखूं।

चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं।

रहोग तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं।


देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।

रुक्मणी का श्री लिखूं या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं।


रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं।

वासुदेव का तनय लिखूं या नन्द का गोपाल लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

 

नदियों सा बहता लिखूं या सागर सा गहरा लिखूं।

झरनों सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !


आत्मतत्व चिंतन लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं।

स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !कितना लिखूं !

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !

  
- सुधीर शर्मा 

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